Tuesday, May 29, 2012

बाजीगर की सुहानी जीत - समीर रंजन


बाजीगर की सुहानी जीत
- समीर रंजन
उसके बारे में बुरा सुनना मुझे अच्छा नहीं लगता. पर अगर बुराई सामूहिक हो तो एक अकेले की आवाज़ दब जाती है. वानखड़े स्टेडियम का तमाशा मुझे अगले दिन न्यूज़ चैनल पर दिखाई दिया था…क्योंकि आईपीएल का हर मैच पूरा देख पाना प्रैक्टिकल लोगों के लिए प्रैक्टिकल बात नहीं है. वीडियो के नाम पर तस्वीरें थीं, जिसमें ज़ुबानी आवाज़ की जगह लिखित शब्दों ने ले रखी थी. कई जगह शब्दों की जगह पर चतुराई के साथ गणित के चिह्नों का प्रयोग बेतरतीब तरीके से किया गया था. इन चिन्हों के जरिए ये दर्शाया गया था कि इसके बाद के शब्द भद्दी गालियां थीं, जिन्हें लिखना अनैतिक है. खड़े-खड़े ही पूरी ख़बर देख गया. मन के कई तरह की भावनाएं उमड़ने-घुमड़ने लगीं. दिल दो टुकड़े में बंटकर आपस में ही जिरह करने लगा. एक कहता- छी…छी…छी, दूसरा कहता- ऐसा हो ही नहीं सकता. पहले ने हार नहीं मानी, कहने लगा- उम्र का असर दिखने लगा है अब उस पर. दूसरे ने हार तो नहीं मानी लेकिन उस वक्त मौन रह जाना ही बेहतर समझा. घटना के चश्मदीद गवाह रहे एक बच्चे की कही बात याहू के होम पेज पर ख़बर के रूप में छपी थी. मैंने उसे आपलोगों के साथ शेयर भी किया था. पर उस पर भरोसा कम ही लोगों को हुआ. फिर सेमीफाइनल का दिन आ गया. उस दिन उसने और मेरे दिल के दूसरे टुकड़े, दोनों ने चुप्पी तोड़ी. ज्यादा कुछ नहीं कहा, बस जता दिया कि सही हैं और सच्चे हैं…तो उसे साबित करके ही दम लेंगे. फाइनल में जंग एक तरफ वो किस्मत का सांड था, जिसे छका पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन माना जाता है. दूसरी तरफ वो था…जो हार कर भी बाजी जीतना जानता है. गजब का खेल हुआ. मैदान में रनों की बरसात से बाढ़ आ गई. पर आखिरकार सांड हार गया और बाजीगर जीत गया. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. खेल में हार-जीत का सिलसिला तो चलता रहता है. निर्णायक चौके के तुरंत बाद कैमरा उस गैलरी की तस्वीर दिखाता है…जहां बाजीगर अपनी बिटिया के साथ बैठा था. इस बात को जरा नोट कीजिए, जीत की खुशी को बाजीगर ने सबसे पहले अपनी बिटिया के साथ बांटा…क्यों. आपकी अपनी वजह हो सकती है…पर मेरे दिल का वो दूसरा टुकड़ा कहता है कि वानखड़े स्टेडियम के तमाशे के बाद बाजीगर की जो छवि उसकी अपनी बिटिया के आंखों में धुमिल हुई थी, उसे साफ करना बाजीगर का एकमात्र मकसद था. जिसमें वो कामयाब रहा था. इसलिए उसकी खुशी का उस दिन कोई ठिकाना नहीं था. वो खूब झूमा, खूब नाचा, खूब बोला…पर उसने इस खुशी के लम्हों में भी आपसे, मुझसे, अपने बच्चों से, बीसीसीआई से और पूरी दुनिया से 
बिना किसी शर्म और संकोच के माफी मांगी. सच कहूं तो इस बार बाजीगर जीतने के बाद…जीत से भी आगे चला गया...   

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