Saturday, August 25, 2012

गमछे और मफलर का समाजशास्त्र


गमछे और मफलर का समाजशास्त्र
- समीर रंजन

गमछा का तो मल्टीपर्पस यूज़ गांव-देहात के लोग सदियों से करते रहे हैं. मौसम कोई भी हो- गर्मी की झुलझाने वाली धूप या लू, जाड़े की ठिठुरा देने वाली ठंड या कोहरा और बरसात का बरसाती पानी- गमछे का सदुपयोग देहात के लोग सर और शरीर बचाने के लिए करते रहे हैं. दूर-दराज की यात्रा के दौरान ये इमरजेंसी कोटे का अनाज बांधने के काम भी आता था. फिर इसके छोर पर नोट और सिक्के भी बंधने लगे. यानी गमछा गरीब आदमी का सबकुछ था- रूमाल, छाता, टोपी, चादर, तौलिया...और भी बहुत कुछ. चूंकि गमछा गरीबी की पहचान बन गया, इसलिए अमीरों ने इसका बहिष्कार कर दिया और फिर अमीरों की नकल करते हुए गरीब भी उन्हीं की राह पर चल पड़े. गमछे के बहिष्कार की एक वजह और भी रही. चोरी, डकैती, राहजनी करने वालों से लेकर रंगदारी करने वाले रंगदारों ने भी अपनी पहचान छुपाने के लिए गमछे का इस्तेमाल नकाब के रूप में करना शुरू कर दिया था (शायद तालिबान और अलकायदा के कारिंदों ने भारत के इस आउट डेटेड फैशन को ही कॉपी किया है). इसलिए भारत के मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास ने गमछे से अपना दामन छुड़ा लिया. 
गमछे का उपयोग और विस्तार क्षेत्र, दोनों सिमट गए. अमीरों के पास दूसरे मौसमों की मार से बचने के लिए साधन तो थे, लेकिन ठंड से बचने (खासकर चेहरे को बचाने) का कोई कारगर उपाय नहीं था. बंदर टोपी से पहचान के छिप जाने का खतरा था, हैट हवा में सम्हलती नहीं थी और कैप और साधारण टोपियां सिर को ही बचा पाती थीं. शायद इसी समस्या से निपटने के लिए मफलर तैयार किया गया. गमछे में कट मारकर उसका शॉर्ट रूप या कह लीजिए कि उसका मॉडर्न रूप. लड़कियों के स्कार्फ का ही मेल वर्जन था मफलर. पर जिस देश में चेहरे से ही पहचान बनती हो, वहां चेहरे का यूं ढंक जाना लोगों को ज्यादा दिन तक रास नहीं आया. इसलिए मफलर की उमर भी हर सर्दी दर सर्दी कम होती चली गई और फिर एक दौर ऐसा भी आया जब वह दिखना बंद हो गया. उसने खुद को घर के अलमीरे में कैद कर लिया या फिर पोछा बनकर फर्श की गंदगी साफ करते हुए शहीद हो गया.
पर इस साल गमझे और मफलर, दोनों ने एक साथ फिर से द ग्रेट इंडियन सोसाइटी में इंट्री मार दी है. धनबाद के वासेपुर के गमछे से फिल्म वालों का अऩुराग पर्दे पर क्या दिखा, गमछा हर गर्दन पर फिर से झूमने लगा. इसी तरह इंडियन टाइगर ने पाकिस्तानी कैट को इम्प्रेस करने के लिए गले में मफलर क्या डाला, पूरा इंडिया ही गले में मफलर डालकर टाइगर बन कर कैट के शिकार पर निकल पड़ा. वाकई इस साल बॉलीवुड ने इंडिया की उसकी नग्न होती जवानी को तन ढंकने के दो पारंपरिक वस्त्र तो दे ही दिए हैं. हिंदुस्तान के युवकों के लिए ये जरूरी भी हो गया था. युवतियों ने तो पहले ही घूंघट विहीन होने के नुकसान को भांप लिया है. सन बर्न, डस्ट और पॉल्यूशन से बचने के साथ-साथ शिव सैनिकों से भी बचाव के लिए युवतियां पिछले कुछ सालों से गमछे के फी-मेल वर्जन का इस्तेमाल चेहरा छिपाने के लिए करने लगी हैं. पर नवयुवकों को अभी गमछे के असल फायदों को पहचानने में वक्त लगेगा. क्योंकि अभी तो बरसात ही बीती है...ठंड आनी बाकी है.